जब बात रफ़अतों की होती है औज और बुलन्दियों की होती है तो क़ुवते फिकरे शऊर इंसानी किसी नुक़तए आग़ाज़ से किसी इन्तेहा या मेअयारे बलंदी की तलाश में सफ़र करने लगती हैं! लेकिन इस्तेदाद ज़रफ़ के लिहाज़ से परवाज़ फिक्र के बाज़ू व् पर साथ देते हैं और जिसके बाद इनके पंख टूट टूट कर गिरने लगते हैं और फिर एक जुम्बिशे खफ़ी के सेवा …
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