अल्मुन्तज़र हिंदी – शअबान १४२९ह
जब बात रफ़अतों की होती है औज और बुलन्दियों की होती है तो क़ुवते फिकरे शऊर इंसानी किसी नुक़तए आग़ाज़ से किसी इन्तेहा या मेअयारे बलंदी की तलाश में सफ़र करने लगती हैं! लेकिन इस्तेदाद ज़रफ़ के लिहाज़ से परवाज़ फिक्र के बाज़ू व् पर साथ देते हैं और जिसके बाद इनके पंख टूट टूट […]
अल्मुन्तज़र हिंदी – मुहर्रम १४३४ह
चिलचेलाती धुप आफ़ताब निस्फुन्नेहर का जलाल अपने शबाब पर था! ऐसा लगता था जैसे अपनी तेज़ धार किरनों से ज़मीं को जला कर ख़ाक कर देगा! लेकिन ज़मीन भी आफ़ताब की हमला आवर तपिश के मद्दे मुक़ाबिल फ़ेज़ा में उसकी सोज़िशें का जवाब दे रही थी! बरहना सर-ओ-पा हाथों के ज़ंजीर से ख़ुद के जकड़ […]
अल्मुन्तज़र हिंदी – मुहर्रम १४३३ह
इस्तेग़ासा : क्या करें हवस परस्तों की तूग़यानी बढ़ती जा रही है! हर निहाले चमन के लिए तबर तेज़ किये जा रहे हैं हर ताएरे नग़मा ज़न के लिए नई नई शक्लों में क़फ़स बनाए जा रहे हैं ! अक़वामे आलम की पेश रफ़ती ने गोशत पोस्त के इन्सान को बला खेज़ हवाए नफ़सी के […]
अल्मुन्तज़र हिंदी – मुहर्रम १४३१ह
सब्र का लफ्ज़ हर समाज और हर मुआशरे में कम से कम पढ़े लिखे लेगों के नोके ज़बान पर रहता है ! शऊर की आंखे खुलने के बाद से आख़ेरी साँस तक सब्र ज़ख़महाए जिगर पर म्दवाए दर्द बन क्र उभरता है!… …जारी
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